Sunday, December 8, 2019

बहुत कुछ देखा है इस चौंक ने लुधियाना में

पविलियन चौंक ही कभी सेशन चौक हुआ करता था 
लुधियाना: 8 दिसंबर 2019: (कार्तिका सिंह// मन की दुनिया-मन के रंग)::
यह लिखा है आई लव लुधियाना। स्थान है पविलियन माल। इसी स्थान पर कभी अलुमिनियम का एक बैंच लगा होता था। थके मंडे लोग कुछ पल के लिए यहां बैठ जाते। मैन भी यहां कई बार बैठ कर देखा। मकसद होता था अतीत के दृश्य को मन की आंखों से देखना, समझना और महसूस करना। गुज़रे चुके वक़्त को दोबारा बुलाने जैसा मानसिक प्रयोग भी कह सकते हैं आप। गुज़रा हुआ ज़माना मेरे मन से निकली उन खामोश आवाज़ों को सुन भी लिया करता था। वही चाय की दुकानों से आती आवाज़ें। समोसा-तिकी बेचने वालों की आवाज़ें। आसपास बने छोटे छोटे ढाबों की आवाज़ें। कोशिश करो तो अब भी सुनाई देती हैं वे सब आवाज़ें। 
आपको याद हो न हो यह वही स्थान है जहां कभी सेशन कोर्ट हुआ करती थी। इस चौंक का नाम सेशन चौंक हुआ करता था। लोग इसे पुरानी कचहरी चौंक भी बोला करते। हर रोज़ सुबह से ही यहां अदालती झगड़ों में उलझे लोगों की भीड़ सी जमा हो जाती। इंसाफ पाने की उम्मीद बहुत से पीड़ित लोगों को अदालत में ले आती। यह बात अलग है उन्हें अक्सर हर बार नई तारीख ही मिलती। देश में आज़ादी आने के बाद जन्मी पीढ़ियों ने भी इस अदालत के सीन देखे और उनके बज़ुर्गों ने भी। आतंकवाद के दौरान यहां गोलियां भी चलीं जब खालिस्तानी संगठनों ने अपने एक खास सदस्य को छुड़वा लिया था। बजुर्ग लोग बताते हैं कि उस दिन सभी सन्न रह गए। हम लोग गोलिओं की आवाज़ सुनते ही ज़मीन पर लेट गए। गोलियां कुछ मिनटों तक चलती रहीं।  सनसनी सी छायी रही। अगले दिन फायरिंग की यही घटना अखबारों की हेड लाईन बनी।
इस तरह बहुत सी यादें हैं जो घर परिवार के लोगों से पता चलती हैं। मैने खुद यहां पर अदालत का सीन नहीं देखा। बातें सुन कर इच्छा उठती कि काश अतीत भी किसी तरह आंखों के सामने आ जाया करे। अब तो वीडियो कैमरे भी आम हो गए हैं और वीडियो बना कर अनमोल दृश्यों को संभालने वाले लोग भी बहुत हो गए हैं। उन दिनों इस तरह का चलन आम नहीं था।
इसलिए यहां लगे बैंच पर बैठ कर अतीत को महसूस करना बहुत अच्छा लगता था। अब वह बैंच भी नहीं है। उसी स्थान पर लिखा है-आई लव लुधियाना। यह भी तो मेरे ही मन की आवाज़ है। अतीत के अनुभव कराने वाला यह स्थान मुझे आज भी बहुत अच्छा लगता है।-- कार्तिका सिंह

कांटों से निभाना सीख लो फिर फूल ही फूल खिलते रहेंगे

यकीन न हो तो आज़मा कर देख लो-सच में मान जाओगे 
लुधियाना: 8 दिसंबर 2019: (कार्तिका सिंह//मन की दुनिया-मन के रंग)::
कैक्टस गार्डन का होना मेरे लिए सचमुच किसी हैरानी से कम नहीं था। जब मैंने सुना कि बाकायदा इस नाम का एक बाग़ मौजूद है तो मैंने इस जा कर देखने का मन बनाया। बेहद हैरानी थी की कोई कांटों से इतना प्रेम कैसे कर सकता है। फिर याद आयीं कुछ पंक्तियां। कभी किसी शायर ने लिखा था:
गुलों से खार बेहतर हैं जो दामन थाम लेते हैं! दरअसल कैक्टस गार्डन की चर्चा सुनी पीएयू के गुलदाउदी शो में जो 3 और 4 दिसम्बर को था। समाप्त हो रहे वर्ष 2019 को महकते अंदाज़ में विदा कहने का एक यादगारी अंदाज़ जिसे केवल पीएयू की मैनेजमेंट ही जानती है। इसी गुलदाउदी शो में एक स्टाल एक ऐसे व्यक्ति का भी था जिसने कांटेदार पौदों को बहुत अच्छे ढंग से सजाया हुआ था और वह कैक्टस के इन पौदों को 200/-रुपये प्रति गमला के हिसाब से बेच रहा था। इन छोटे छोटे गमलों को ड्राईंग रूम में रखने के काम लाया जाता है। इनको पानी चाहिए बहुत ही थोड़ा सा और वह भी महीने में दो बार।
इसी गुलदाउदी शो में मुझे पता चला कि कैक्टस गार्डन का नाम अब बदल जा चुका है। अब इसका नाम बदलकर राष्ट्रीय कैक्टस और सस्कुलेट बॉटनिकल गार्डन और रिसर्च सेंटर रखा गया है, जोकी चंडीगढ़ के सैटेलाइट शहर पंचकूला के केंद्र में स्थित है। अजीब इतफ़ाक़ है कि चंडीगढ़ को पत्थरों का शहर कहा जाता है और यहां का रॉक गार्डन सचमुच बहुत लुभावना है। अब पंचकूला का कैक्टस गर्दन भी बहुत लोकप्रिय है। उन काँटों की बात करता हुआ जो सिर्फ चुभते ही नहीं बल्कि फूलों की रक्षा भी करते हैं। इस उद्यान के विकास के पीछे उद्देश्य कैक्टस और सुकुलुओं की लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण और संरक्षण के साथ-साथ पर्यटकों को आकर्षित करना था। सात एकड़ जमीन के क्षेत्र में फैला हुआ यह एशिया के सबसे बड़े आउटडोर भू-भाग के कैक्टस और सूक्कुल गार्डन के रूप में माना जाता है जिसमें 2500 से अधिक प्रजातियों के कैक्टस और सुकुलेंट हैं। यहां कई तरह के कांटेदार पौदे हैं। फिर भी यहां कोई कांटा किसी हसीना को उस तरह नहीं चुभता कि उसे अपने प्रेमी को आवाज़ लगानी पड़े। दिलचस्प बात है कि लिखने वालों ने हिंदी और पंजाबी दोनो में ही कांटों पर बहुत एच्गीहके रुमान्टिक गीत लिखे हैं। इस गार्डन में भारतीय सुकलों का एक व्यापक संग्रह है, जो दुनिया में सबसे बड़ा है, इनमें से कुछ बहुत दुर्लभ हैं और पहले से ही लुप्तप्राय प्रजातियों के रूप में घोषित कर चुके हैं, जिसमें भारतीय मूल के जीनस कार्लुमा का पूरा संग्रह शामिल है। बगीचे में तीन हरे घरों का घर है कैक्टस और सुकुलु भी औषधीय मूल्यों के लिए जाना जाता है क्योंकि सदियों से भारतीय शर्करा का उपयोग आयुर्वेद और यूनानी दवाओं में किया जा रहा है। यह न केवल पर्यटकों के लिए बल्कि वनस्पतिविदों के लिए आकर्षण का एक बड़ा स्रोत है। यह पार्क अप्रैल से सितंबर के बीच मे सुबह 9 से 1 बजे तक और शाम 3 से 7 बजे तक तथा अक्तुबर से मार्च तक सुबह 9 बजे से 1 बजे तक और शाम 2 से 6 बजे तक खुला रहता है। इसका प्रवेश शुल्क 10 रु प्रति व्यक्ति है। मेरा इरादा है इस वर्ष के अंत में जब एग्ज़ाम समाप्त हो जाएंगे तो क्रिसमिस की छुट्टियों को इस गार्डन में जा कर यादगारी बबय जाए। इसके बाद मिलेंगे कुछ नई तस्वीरें लेकर।